दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो।
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।
"पर्दे में मधुशाला"
कस्बा भोकरहेड़ी बस स्टैंड पर स्थित मधुशाला (शराब ठेका) का व्यंग्यात्मक विश्लेषण गय्यूर मलिक की कलम से
एक मधुशाला जो सदा से भोकरहेड़ी बस स्टैंड की शान बढ़ा रही है और उम्मीद है आगे भी बढ़ाती रहेगी। यदि इस मधुशाला को भोकरहेड़ी बस स्टैंड की पहचान कहा जाए तो अतिश्योक्ति नही होगी।
इस बार मधुशाला ने और तरक्की कर ली है, पिछले साल जहां मधुशाला के पास एक ही बैंक था, वहीं इस बार मधुशाला की शान में चार चांद लगाने के लिए स्टेट बैंक को बाजार से बस स्टैंड पर लाया गया है।
यह मधुशाला में इतनी अनुपम योग्यताएं और शक्तियां समाहित हैं कि लाख धरने, विरोध और शिकायतों के बाद यह चट्टान की तरह अपने स्थान पर विराजमान है, हालांकि इसके ठीक बराबर में मंदिर भी है।
यह मधुशाला अपने आप मे इतनी सर्वगुण सम्पन्न है कि अगर आप इस मधुशाला की विशेषताओं की व्याख्या करें तो कई दिन लगेंगे। लेकिन यदि संक्षिप्त में बताऊं तो इसके निकट दो मंदिर है, दो बैंक हैं, एक सरकारी अस्पताल है, इंटर कॉलेज है।
मधुशाला के ठीक सामने प्रत्येक वर्ष कांवड़ सेवा शिविर का आयोजन किया जाता है, लेकिन आपने इस मधुशाला के प्रति यदि कोई धारणा बना ली है तो कृपया उसे अपनी मेमोरी से डिलीट कर दें क्योंकि ये ऐसी वैसी टटपुँजिया टाइप की मधुशाला नही है। यह इतनी शर्मीली मधुशाला है कि शिव भक्तों और भगवान भोले शंकर में आस्था का परिचय देते हुए कांवड़ के दौरान यह पर्दे में आ जाती है।
आप अभी जाकर देख सकते हैं। आपको मधुशाला शर्मीली दुल्हन की तरह पर्दे से ढकी हुई मिलेगी।
पहले यह मधुशाला सिर्फ अंग्रेज़ी और देसी की ही सेवाएं देती थी किंतु कई सालों से इसने अपनी सेवाओं को विस्तार देते हुए अपने चाहनेवालों के लिए ठंडी बियर की सुविधा भी आरम्भ कर दी है।
पहले भी इस मधुशाला को लेकर चर्चाएं हुई हैं और अधिकारीगण भी इसका निरीक्षण करने आये लेकिन किसी ने इसके स्थान को बदलने की जुर्रत नही की। क्योंकि इस भव्य मधुशाला से उनके प्रेम के चलते अधिकारीगण लोगों की भावनाओं को नज़रंदाज़ कर इस मधुशाला से टकराने की हिम्मत नही करते।
नगर के प्रसिद्ध कवि पंडित रामकुमार शर्मा 'रागी' जी ने इस मधुशाला पर चार पंक्तियां लिखकर इसके शौर्य और सौंदर्य के बारे में कहा है :-
दारू छक कर पीजिये, संग में लेकर यार
चाहे बस स्टैंड हो, चाहे हो बाजार
चाहे हो बाजार, रहो तुम गिरते पड़ते
मधुशाला के द्वार रहो, तुम शीश रगड़ते
कह "रागी "कविराय, न जब तक स्वर्ग सिधारूँ
रब से यही गुहार, पीऊं मैं छककर दारु
भोकरहेड़ी आइए और इस दुर्लभ और अद्भुत मधुशाला के दर्शन अवश्य करके जाईये और लोगों की बात पर क्या ध्यान देना। कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।
पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा।
कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।